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Wednesday, 11 April 2018

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जीर्णोद्धार की आस में पोहरी का प्राचीन किला, पुरातत्व विभाग मौन

Rahul Jain Pohari 02:34
2100 वर्ष प्राचीन है पोहरी का किला, प्रसाशन की उदासीनता से नहीं रुक रही तोड़फोड़





जीर्णोद्धार की आस में पोहरी का प्राचीन किला, पुरातत्व विभाग मौन



आज भी दाफीना की खोज में ,खुदा जा रहा है किला


राहुल जैन पोहरी-शिवपुरी जिले से 35 किमी दूर घने जंगल के बीचों बीच वसा पोहरी नगर जिसे पहले पोरी के नाम से जाना जाता था पोहरी का किला पहले  जिले में भी प्रसिद्ध था बताया जाता है कि सिंधिया रियासत की ग्रीष्म कालीन राजधानी शिवपुरी से दूर पोहरी नगर में  ऐतिहासिक दुर्ग के बारे में बताया जाता था इस ऐतिहासिक दुर्ग का निर्माण 2100 वर्ष पूर्व किया गया था इस किले की सुंदर के कारण चारो ओर इस दुर्ग की चर्चा थी किले पर बहुत से राजाओ ने राज्य किया है इस किले को पहले भूतिया किले के नाम से भी जाना जाता था इस किले में पहले के समय मे रात में क्या दिन में भी लोग जाने से डरते थे इस किले में छुपा हजारो वर्ष प्राचीन खजाने की रक्षा भूत आज भी करते है पोहरी का किला, कभी अपने खौफ से लोगों में दहशत फैला देने वाला यह किला आज खण्डर  बन चुका है कभी रात में धुंधरुओं सहित कई तरह की आवाज के आने से लोग इस ओर आने का साहस तक नहीं उठा पाते थे, लेकिन इसके आसपास लगातार लोगों के धीरे-धीरे बसने से किले से आने वाली आवाजें तो बंद हुई ही साथ ही लोग भी यहां आने लगे। कभी डर का प्रयाय रहे पोहरी दुर्ग में अब तो लगता है मानो भूतों का नामोनिशां तक नहीं रहा। ऐसे में कई लोगों का तो यह तक मानना है कि शायद इंसानों के डर के चलते ही भूत यहां से डरकर भाग गए हैं। तभी तो कुछ सालों पहले जहां लोग दिन के समय तक नहीं आते थे वहां अब शाम को भी चले जाते हैं इस ऐतिहासिक दुर्ग पर स्थानीय वासियो से लेकर प्रशासन द्वारा भी ध्यान नही दिए जाने के कारण पोहरी का ऐतिहासिक किला आज अतीत के पन्नो में कही सिमट के रहा गया है जबकि प्रशासन व पुरातत्व विभाग  द्वारा आज तक पोहरी किले की राख रखाव पर ध्यान भी नही दिया गया वर्तमान में  किले के अंदर अब बस्ती के अलावा कुछ नही शेष बचा है





सिंधिया रियासत की ग्रीष्मकालीन राजधानी में आता था पोहरी का किला-



शिवपुरी के पास पोहरी कस्बा और वहां पर बना सदियों पुराना ऐतिहासिक दुर्ग, जिसमें पहले रात के समय जाना तो दूर की बात, दिन में भी जाने से लोग डरते थे। यह रहस्यमयी एक किला है। यह डर इसलिए था कि कहा जाता है कि इस दुर्ग में रात के समय भूतों की महफिल सजा करती थीं जो दुर्ग में  छिपे खजाने की देख रेख करती थी इस लिया उस समय लोग इस खाजने के नाम से ही डरते थे कई बुजुर्ग लोगों ने यहां पर घुंघरुओं की आवाज के साथ नृत्य की ताल भी सुनी है। इसी कारण इस दुर्ग में सरकारी दफ्तर भी नही खुल पाये और उस समय स्कूल भी नही बने ,आज भी बहुत से लोग किले में बंद खाजने की खोज में किले को खुद रहे है जबकि कुछ समय बाद किले के बचे पत्थर भी किले से गायब हो जायेगे





 पुराना दुर्ग बना खण्डर,पुरातत्व विभाग ने नही दिया ध्यान-



शिवपुरी जिले में अपनी अलग पहचान बना पोहरी का दुर्ग नक्काशी का सुंदर नमूना है इस किले का इतिहास लगभग  2,100 वर्ष पूर्व का बताया जाता है लोगो से बात करके पता चलता  है कि कभी इस दुर्ग में भूतों का कब्जा हुआ करता था इस लिया यहां किला धीरे धीरे खण्डर होता चल गया पहले तो स्थिति यह हो गई थी कि यदि कोई टूरिस्ट इसे देखना चाहे तो स्थानीय निवासी उसके साथ सहयोग नहीं करते। फिर भी कुछ हिम्मत करके अंदर आ जाते थे इस किले में शाम ढ़लते ही आत्माओं का इस किले पर कब्जा हो जाता और दिवंगत खंडेराव की सभा शुरु हो जाती। खंडेराव सभासदों के साथ नर्तकियों के नृत्य का आनंद लेते हैं। जिससे घुंघरुओं की आवाज आती हैं पोहरी की बुजुगों ने इस किले से आवाज सुनी है





पहले कभी दुर्ग में यहां लगता था स्कूल -


कई वर्षों पहले दुर्ग में एक स्कूल खोला गया था, लेकिन कहा जाता है कि एक छात्र की मौत के बाद इसे बंद कर दिया गया।  दुर्ग में बुरी आत्माओं और भूतों के चलते यहां पर कोई सरकारी दफ्तर तक नहीं खोला गया, जबकि प्रदेश के कई शहरों में बने दुर्गों में सरकारी दफ्तर से लेकर कालेज व स्कूल तक चल रहे हैं। वर्तमान में किले में विशाल वस्ती के साथ दो शासकीय विधायक भी संचालित है




 पहले दुर्ग में थी वीर खांडेराव की आत्मा ,करती थी खाजने की रक्षा-


बताया जाता कि पोहरी के पुराने किले का जीर्णोद्धार मराठा वीर खांडेराव ने करवाया था, उसके बाद वे इसी किले पर रहे। उनकी मृत्यु के बाद यहां कोई दूसरा आदमी या परिवार स्थायी तौर पर टिक नहीं पाया। रात में यहां से घुंघरूओं की आवाज आती है। यहां कई लोगों ने आत्माएं घूमते देखी हैं। कुछ लोगों का मानना है कि यहां खजाना छिपा हुआ है। यहां के लोगों के अनुसार पूर्व में कई लोगों ने यहां खजाने को  चुराने के मकसद से किले में सेंधमारी भी की, परंतु इसके बाद या तो वे रहे नहीं या उनकी मानसिक स्थिति बिगड़ गई, इसलिए यह माना जाने लगा कि भूत दुर्ग के खजाने की रक्षा कर रहे हैं। लोगों के अनुसार कुछ समय पहले यहां भी कुछ लोगो द्वारा  खुदाई करने के बाद बिना कारण वापस चली गई। कुछ लोगों का तो आज भी माना है, की आज भी  भूत खजाने की रक्षा कर रहे हैं, इनके अनुसार इसी कारण तो अज तक यहां कोई भी खुदाई नहीं कर पाया। और जिसने भी इसकी कोशिश की उसके साथ बुरा ही हुआ।





कपड़े की बाल्टी में घोड़े ने मारी लात-




क्षेत्रवासियों के अनुसार इस किले में कुछ वर्ष पूर्व होली के दौरान एक धोबी परिवार ने यहां की बावड़ी में कपड़े धोए, इसके बाद इन धुले कपड़ों को एक बाल्टी में रखकर उनकी बच्ची सूखाने के लिए कही ओर ले जा रही थी, कि तभी उसने देखा की एक शख्स किले की दीवारों पर घोड़ा दौड़ाते हुए आ रहा है। उसके पास आते ही घोड़े ने बाल्टी में ऐसी लात मारी की बाल्टी कई फिट दूर जाकर गिरी और सारे कपड़े फिर से गंदे हो गए। लेकिन इस घोड़े और शख्स को बच्ची के ठीक पीछे आ रहे परिवार ने नहीं देखा बाल्टी को उड़कर दूर गिरते देख परिवार वालों ने बच्ची से इसका कारण पूछा तो उसने सारा वाक्या कह सुनाया। पहले तो परिवार को शक हुआ परंतु जब उन्होंने गिरी बाल्टी की दूरी को देखा तो उन्हेंं भी इस बात का अहसास हो गया कि उनकी छोटी बच्ची कपड़ों से भरी बाल्टी को इतनी दूर तो नहीं फैंक सकती साथ ही बाल्टी जिसे काफी ऊंचाई तक जाते हूए उन्होंने भी देखा था, इस घटना से सहम गए और फिर कभी यह परिवार इस बावड़ी पर कपड़े धोने नहीं आया।





पुरातत्व विभाग या प्रशासन ने नही दिया ध्यान-


पोहरी नगर का ऐतिहासिक किला का खण्डर बन गया है 2100 वर्षो पूर्व बने  किले को देखने के लिया प्रदेश के भी पर्यटक आया करते थे कुछ असामाजिक तत्वों द्वारा लगातार किले की तोड़फोड़ की जा रही है और किले के पत्थरों से मकान भी बनाये जा रहे है इस बारे में स्थानीय निवासियो से लेकर मीडिया द्वारा भी भी प्रशासन को अवगत कर दिया गया पर आज तक कोई करवाई नही की गई इस दुर्ग पर यदि पुरातत्व विभाग यदि समय रहते ध्यान दे लेते तो आज ऐतिहासिक दुर्ग अतीत के पन्नो में सिमट के नही रहता




क्या कहना है अधिकारी


पोहरी का  किले किसके अधीन है इस बारे में जानकारी लेकर ,उसके बाद आगे की करवाई की जायेगी

मुकेश सिंह एस.डी.एम पोहरी
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